Krishna Krishna Tum Ho Jao - Aparna Gupta 'Ishwa'

युगों-युगों  से  चली  आ  रही  गाथा  फिर  से  दोहराओ,
मैं त्याग-प्रेम में बनूँ राधिका ,कृष्ण-कृष्ण तुम हो जाओ।

जब  प्रेमांकुर स्फुटित  हों  चहुँओर  प्रेम के पल्लव हों,
जब निर्जन वन में भी कोयल के मीठे-मीठे कलरव हों।
जब देहरी पर  नवयौवन की  इक शैशव सी अल्हड़ता हो,
तब मैं मुरली की तान मधुर तुम राग नवल कोई हो जाओ ।।१।।

जब  हृदय  तरुवर  पुष्पों से  डाली-डाली  आच्छादित  हो,
जब नख से शिख तक रोम-रोम मन का मयूर आह्लादित हो।
जब पतझड़ में भी प्रेम-तरु  इक कल्प वृक्ष सा हरा रहे,
तब मैं स्वर्णिम वो स्वप्न बनूँ तुम दृश्य मनोरम हो जाओ ।।२।।

जब कल-कल सलिला बहती हो और सारा उपवन रसमय हो,
जब झर-झर पुष्पों की वृष्टि से मन का मधुबन मधुमय हो।
जब सृष्टि का हर कोना-कोना अद्वितीय मनमोहक हो,
तब मैं यमुना की धार बनूँ तुम जलज किनारे हो जाओ ।।३।।

यदा कदा इन नयनों का जब उन नयनों से परिणय हो,
दो हृदयों के मधुर मिलन से व्योम-धरा सब गतिमय हो।
शनैः शनैः जब नयन मार्ग से प्रेम हृदय तक जाता हो,
तब उत्कंठा मैं बन जाऊँ, तुम प्रेमाकर्षण हो जाओ ।।४।।

जब श्यामल-श्यामल देह तुम्हारी पीताम्बर से सज्जित हो,
पैंजनियों की छम-छम सुनकर सातों सुर भी लज्जित हों।
जब चँचल से इन दो नैनन में स्याह सा काजल अंजित हो,
तब आभूषण मैं बन जाऊँ सौंदर्यमयी तुम हो जाओ ।।५।।

जब घुँघराले से केशों में इक मोर का पँख विभूषित हो,
जब मोती और चंदन की माला शिरोधरा में शोभित हो।
जब पृथ्वीलोक से देवलोक तक दसों दिशाएँ पुलकित हों,
तब मैं देवों का गान बनूँ और यशोनन्दन तुम हो जाओ ।।६।।




जब शीतल शीतल पवन निशि में धीमे धीमे बहती हो,
जब केवड़े की सुगंध समूचे वातावरण में रहती हो।
जब कलानिधि की छटा अलौकिक अंबर से बिखरी जाए,
तब पूर्णमासी मैं बन जाऊँ प्रियवर तुम हिमकर होजाओ ।।७।।


जब मंद-मंद मुस्कान मनोहर मनमोहक सी खिल जाए,
हृदय-दशा के वर्णन को जब व्यग्र अधर भी सिल जाएँ।
जब अकुलाहट और आतुरता दोनों का साथ समागम हो,
तब तृषित धरा मैं बन जाऊँ,तुम नेह-पयोधर हो जाओ ।।८।।

जब प्रतिपल प्रतिक्षण ह्रदय को अपने व्याकुल करने वाले हों,
जब इक क्षण भी सौ सदियों जैसे आकुल करने वाले हों।
सम्पूर्ण देह के रोम रोम में विरह वेदना व्याप्त हो जब,
तब मैं अश्रु की धार बनूँ तुम दर्द विरह का हो जाओ ।।९।।

रास-प्रेम जब परिवर्तित हो भक्ति-रस में डूबेंगे,
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम सर्वस्व ही झूमेंगे।
पराकाष्ठा प्रेम की अपने चरम क्षणों पर पहुँचेगी,
तब मैं सलिला बन जाऊँ और रत्नाकर तुम हो जाओ ।।१०।।

जब विकट स्थिति निर्मित हो और जीवन कुरुक्षेत्र सा हो,
जब परिस्थिति संशय की हो मन किंचित राग-द्वेष सा हो।
जब सम्मुख अपने 'प्रियजन' हों और निर्णय की विवशता हो,
तब मैं अर्जुन का प्रश्न बनूँ तुम पावन गीता हो जाओ ।।११।।

युगों-युगों  से  चली  आ  रही  गाथा  फिर  से  दोहराओ,
मैं त्याग-प्रेम में बनूँ राधिका ,कृष्ण-कृष्ण तुम हो जाओ।।

© Aparna Gupta Paliwal "Ishwa"

Krishna Krishna Tum Ho Jao - Aparna Gupta 'Ishwa' Krishna Krishna Tum Ho Jao - Aparna Gupta 'Ishwa' Reviewed by Ashish Awasthi on April 28, 2020 Rating: 5

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