मैं कवि हृदय हूँ
कैसे कठोर हो जाऊं ?
गीत मिलन के सुनने हैं ?
तो बोलो मैं गाऊँ
दिल को छलनी कर दे जो
वो गीत कहाँ से लाऊं
अंतस में जो आग लगा दे
वो शब्द कहाँ से लाऊं
जो मन की शीतलता हर ले
वो भाव कहाँ से लाऊं
विरह वेदना है मुझमें भी
कैसे तुमको दिखलाऊँ ?
पर
मैं कवि हृदय हूँ
कैसे कठोर हो जाऊं ?
Main Kavi Hriday Hu Kaise Kathor Ho Jaun - Hindi Kavita by Ashish Awasthi
Reviewed by
Ashish Awasthi
on
March 16, 2020
Rating:
5
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