राहों के पत्थर देखे इतने के अब नहीं संभल पाता हूँ अपने पीछे चलते चलते खुद से दूर निकल जाता हूँ अब तो कोई रोक लो आके मैं लीक तोड़ कर जाता हूँ फिर न कहना, के कहा नहीं ? सब पहले से बतलाता हूँ झूमो तुम सब मैखाने जाकर आओ ,रास्ता मैं बतलाता हूँ।।
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अच्छा है .. हमारी शायरी भी पढीये
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वो जान गयी थी हमें दर्द में मुस्कराने की आदत है,
ReplyDeleteदेती थी नया जख्म वो रोज मेरी ख़ुशी के लिए।
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