Hisab Mat Karna Mera Mai Behisab Likhta Hu - Kavita By Ashish Awasthi

हिसाब मत करना मेरा, मैं बेहिसाब लिखता हूं
तुम रातों की फिक्र करो, मैं बस ख्वाब लिखता हूं

जज़्बातों को बुला कर इक साज़िश लिखता हूं
फिर लफ़्ज़ों से मिल कर उसी का राज़ लिखता हूं

इज़हार, इनकार तो कभी दास्तान-ए-इकरार लिखता हूं
पढ़ता हूं निगाहों को फिर किस्सा-ए-रुख़सार लिखता हूं

कभी फ़लक पे जाके सितारों की बारात लिखता हूं
फिर मिल के जुगनुओं से उनकी भी बात लिखता हूं

कभी इश्क़ की सहर, कभी हिज़्र की रात लिखता हूं
पिला के स्याही क़लम को फिर मैं शराब लिखता हूं

सोचता हूं दिन भर फिर इक दिलनशीं शाम लिखता हूं
मैं कागज़ पे अल्फ़ाज़ नहीं मय के जाम लिखता हूं।।




Hisab Mat Karna Mera Mai Behisab Likhta Hu - Kavita By Ashish Awasthi Hisab Mat Karna Mera Mai Behisab Likhta Hu - Kavita By Ashish Awasthi Reviewed by Ashish Awasthi on July 27, 2018 Rating: 5

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