पैर चादर से ढकता रहे
सिलसिला यूँ ही चलता रहे
ज्यादा ख्वाइशें नहीं हैं मेरी
दो वक़्त का गुज़ारा होता रहे
चाँद मिले न मिले कोई ग़म नहीं
तारों से वास्ता चलता रहे
कोशिश है के ग़म न हो किसी को
बस प्यार का रास्ता चलता रहे
ऊँचे ख़्वाब आएं न आएं
दिल सुकून की नींद सोता रहे
मैं हँसता रहूँ उसे देख कर
वो मुझे देख के हँसता रहे।।
~ आशीष अवस्थी 'ख़ाक'
Pair Chadar Se Dhakta Rahe - Hindi Kavita By Ashish Awasthi
Reviewed by Ashish Awasthi
on
May 28, 2019
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